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Showing posts from June, 2015

AVTAR VANI

मंगलाचरण हे समरथ परमात्मा, हे निर्गुण निरंकार| तू करता है जगत का तू सब का आधार|| कण-कण में है बस रहा तेरा रूप अपार| तीन काल है सत्य तू मिथ्या है संसार|| घट-घट वासी है प्रभु अविनाशी करतार| दया से तेरी हो सभी भव-सागर से पार|| निराकार साकार तू जग के पालनहार| हे बेअंत महिमा तेरी दाता अपरम्पार|| परम पिता परमात्मा सब तेरी संतान| भला करो सभ का प्रभु सब का हो कल्याण||  इक तू ही निरंकार-धन धन सतगुरु` परम पिता परमात्मा, कण कण तेरा वास| करण करावंहार तू, सब कुझ तेरे पास| अंग-संग तैनूं वेख के अवतार करे अरदास| तूं शाहाँ दा शहेनशाह, मैं दासा दा दास| इक तू ही निरंकार (१) रूप रंग ते रेखों न्यारे तैनूं लख परनाम करां| मन बुद्धि ते अक्लों बाहरे तैनूं लख परनाम करां| अनहद ते असगाह स्वामी तैनूं लख परनाम करां| शाहाँ दे हे शाह स्वामी तैनूं लख परनाम करां| आद अनादी सर्वव्यापी तैनूं लख परनाम करां| युग युग अन्दर तारे पापी तैनूं लख परनाम करां| सगल घटा दे अंतर्यामी तैनूं लख परनाम करां| आपे नाम ते आपे नामी तैनूं लख परनाम करां| जीव जंत दे पालनहारे तैनूं लख परनाम करां| कहे अवतार हे प्राण-आ...

Peace and Happiness

We often talk about ‘PEACE & HAPPINESS’. When we meet someone and ask him “How are you?” the common reply is “I’m fine” but, very rarely do we he ar anyone saying “I’m really happy”. Have we ever wondered why this is so. It is said that peace feeds or leads to happiness. But what is the true relationship of peace to happiness..? Could you ever be at peace, if you ar e not happy, or vice versa? In the BHAGWAT GEETA, Lord Krishna tells Arjuna that no one can know ha ppiness without peace. Thus one should know peace to be happy. Unless and until there is peace within, no one can be happy. Happiness can be considered as a “deep sense of inner peace”. If deep inside me, I’m contented and satisfied and at rest and at peace, I shall be happy. This also affects the thoughts that I have. If I have positive thoughts, I shall be calm and at peace and hence happy too. But, if the opposite were true, then I would be in a state of unhappiness. Another perspe...

Vichar

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Zindagi.... जिंदगी वास्तव में प्रभु का उत्तम उपहार है बचपन से हम सुनते आ रहे हैं कि जिंदगी का सफर क्षणभंगुर है। एक पल हंसी-खुशी और अगले पल में गम, यही तो है जिंदगी की सच्ची हकीकत। ऐसी क्षणभंगुर जिंदगी को याद करते समय हमारे मन में समय-समय पर विचार आ जाते हैं कि इस क्षणभंगुर जीवन में हम क्या करें और क्या न करें? क्षणभंगुर जिंदगी के बारे में अगर हम ज्यादा सोचते रहे और हर पल ही इस बारे में चिंता करते रहे तो यह बात निश्चित है कि हम दुखी हो जाएंगे। इसलिए यह हकीकत जानते हुए भी कि जीवन क्षणभंगुर है, अगर आप इस जिंदगी का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो केवल यह ध्यान रखें कि प्रति पल इस जीवन यात्र में जिंदगी का आनंद लेते जाइए। आप न तो आने वाले कल की चिंता करें और न बीते हुए समय का गम करें। केवल वर्तमान लम्हे को समग्रता से जिएं। तब हमें लगेगा कि जिंदगी वास्तव में प्रभु का उत्तम उपहार है। जब हमारे मन में यह बात बैठ जाती है कि वास्तव में जीवन क्षणभंगुर है तो ऐसे में हम केवल पैसे की लालसा को हटा दें और अपने जीवन को सृष्टि के उन कार्यो की तरफ मोड़ दें जहां मिलता है सच्च आनंद। हमें इसी आनंद की ओर बढ़ना च...